श्रीमद भगवत गीता के अनमोल कथन जो श्री कृष्ण ने कहे
श्रीमद भगवत गीता के अनमोल कथन जो श्री कृष्ण ने कहे, दोस्तों भगवत गीता हमारे हिन्दू धर्म का एक ग्रंथ है पर यह एक ऐसा ग्रंथ है जो हमे जीना सिखाता है जीवन में केसा रहना है, केसा बोलना है केसा व्यवहार करना है यह सब हम श्रीमद भगवत गीता से सीखते है, भगवत गीता द्वापर युग में श्री कृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी. जिसमे भगवान कृष्ण ने अर्जुन को जीवन जीने का तरीका सिखाया था भगवान ने यह बताया था की हमे लोगो से कैसे व्यवहार करना चाहिए किसके साथ कैसा रहना चाहिए क्या सही है और क्या गलत है यह सब भगवान ने अर्जुन को बताया है.दोस्तों हिन्दू धर्म में और भी कई ग्रंथ है रामायण है, वेद है, उपनिषद है, और सब का अपना – अपना महत्व है. पर श्रीमद भगवत गीता सब से अलग है भगवत गीता जीवन का सार है जो हमे जीवन जीने का तोर तरीका सिखाती है. दोस्तों भगवान कृष्ण श्री नारायण का अवतार है जिन्होंने इस धरती पर धर्म की स्थापना करी है. जब – जब दुनिया में पाप का पलड़ा भारी होने लगता है. तब – तब भगवान को इस दुनिया में अवतार लेकर आना पड़ता है और वो अपने अवतार के द्वारा दुनिया में धर्म की स्थापना करते है.
उसी तरह भगवान कृष्ण ने भी द्वापर में धर्म की स्थापना करने के लिए इस दुनिया में अवतार लिया और महाभारत के युद्ध के दौरान उन्होंने अपने श्री मुख से अर्जुन को गीता का ज्ञान सुनाया.
भगवान ने अर्जुन को सही गलत का फैसला करना सीखे जब अर्जुन ने युद्ध में अपने सगे संबंधियों को देख कर युद्ध लड़ने के इंकार कर दिया था तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता सुनाई कोन सही है और कोन गलत है सबका भेद बताया और तब जाकर अर्जुन ने युद्ध लड़ा और अंततः अर्जुन ने उस महाभारत के युद्ध में कौरवों को हराकर जित प्राप्त करी.
दोस्तों आज हम जैसा जीवन जीते है, हम जैसे लोगो से बात करते है, या हमारा जैसा रेहन – सहन है यदि हमे उसमे और अधिक सुधार लाना है तो हमे अपना जीवन भगवत गीता के तरह जीना होगा दोस्तों आज आप जानते है की दुनिया से संस्कार – धर्म खत्म होता जारहा है, हर इंसान अपना जीवन अपने हिसाब से जीता है आज के दौर में कोई किसी की इज्जत नहीं करना चाहता कोई किसी को प्रणाम नहीं करना चाहता क्योकि आज के युग में संस्कार धीरे – धीरे खत्म होते जारहे है
कुछ लोगो को अपने घर में संस्कार मिलते है, और कुछ लोगो को अपने घर में संस्कार नहीं मिल पाते उस वजह से वो अपना जीवन सही तरह से नहीं जी पाते मगर दोस्तों जो लोग श्रीमद भगवत गीता के अनुसार अपना जीवन बिताते है.
भगवान ने जो बताया है उस हिसाब से जीते है अच्छे कर्म करते है लोगो से अच्छी तरह बात करते है सब का आदर करते है तो वे लोग बहुत अच्छे बनते जाते है. ऐसे लोगो को सब पसंद भी करते है, वे व्यवहार में भी सब के प्रिय होते जाते है तो हमे भी अगर अपने जीवन को अच्छा और बेहतर बनाना है तो हमे भी श्रीमद भगवत गीता का अनुसरण करना चाहिए.
श्रीमद भगवत गीता के अनमोल कथन जो श्री कृष्ण ने कहे”
तो दोस्तों अब हम इस पोस्ट में श्रीमद भगवत गीता के अनमोल कथन देखेंगे जो भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन से कहे थे तो अब हम भी वही कथन देखते है.
1 – भगवान ने कहा है, जीवन में अपने कर्म से बड़ा और कुछ नहीं होता हमे अच्छे कर्म करते जाना है.
2 – आप जो भी कर्म करते है वही आपके आगे आने वाले जीवन में आपके सामने आते है.
3 – कर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं और कोई रिश्ता नहीं होता.
4 – आप कितना भी उपाय करलो कितने भी तीर्थ करलो आपको अपने अच्छे बुरे कर्मो का हिसाब यही देना होगा.
5 – जो व्यक्ति आध्यात्मिक जागरूकता के शिखर तक पहुंच चुके है , उनका मार्ग है निःस्वार्थ कर्म जो भगवान के साथ संयोग हो चुके है उनका मार्ग स्थिरता और शांति का है.
6 – बुद्धिमान व्यक्ति को समाज के कल्याण के लिए बिना आस्तिक के काम करना चाहिए.
7 – यद्यपि में इस तंत्र का रचयिता हु, लेकिन सभी को यह ज्ञात होना चाहिए की में कुछ नहीं करता और में अनंत हु.
8 – जब वे अपने कार्य में आनंद खोज लेते है, तब वे पूर्णता प्राप्त करते है.
9 – वह जो सभी इक्छाये त्याग देता है, और “मै” और “मेरा” की लालसा और भावना से मुक्त हो जाता है, उसे शांति प्राप्त होती है.
10 – मेरे लिए न कोई घृणित है और न प्रिय किन्तु जो व्यक्ति भक्ति के साथ मेरी पूजा करते है, वो मेरे साथ है और में भी उनके साथ हु.
11 – इस जीवन के चक्र से कोई नहीं बच सकता.
12 – जो इस लोक में अपने काम में सफलता की भावना रखते है वे देवतावो का पूजन करे.
13 – में ऊष्मा देता हु, में वर्षा करता हु, और रोखता भी हु, में अमरत्व भी हु, में मृत्यु भी हु.
14 – कृष्ण भगवानुवाच इस मृत्युलोक में जो भी आया है उसका जाना निश्चित है.
15 – हम खाली आए थे, और खाली ही जाना है सिर्फ अपने कर्म अपने साथ जाते है.
16 – बुरे कर्म करने वाले, सबसे नीच व्यक्ति जो राक्षसी प्रवतियो से जुड़े हुए है, और जिनकी बुद्धि माया ने हर ली है, वो मेरी पूजा या मुझे पाने का प्रयास नहीं करते.
17 – जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इक्छा रखता है, में उसका विश्वास उसी देवता में दृढ़ कर देता हु.
18 – हे अर्जुन !, मै भुत, वर्तमान और भविष्य के सभी प्राणियों को जानता हु, किन्तु वास्तविकता में कोई मुझे नहीं जनता.
19 – आप जिस की भी पूजा करो जिसमे भी आस्था रखो सच्चे ह्रदय से रखो.
20 – स्वर्ग प्राप्त करने और वहा कई वर्षो तक वास करने के पश्चात एक असफल योगी पुनः एक पवित्र और समृद्ध कुटुंब में जन्म लेता है.
21 – मै सभी प्राणियों के ह्रद्य मै विद्यमान हु, तुम मुझे बाहर मत ढूंडो.
22 – परमात्मा कहते है, जो भी मनुष्य अपने जीवन में नफरत की भावना, लोभ मोह माया, वासना रखते है, उनके लिए नर्क ही सही जगह है.
23 – अगर हम फल की आशा में कार्य करेंगे तो न हमारे कार्य सफल हो पाएंगे और न ही हम अपने लक्ष्य तक पहुंच पाएंगे.
24 – हमारे अंतर मन की शक्ति और सोच ही असली है, बाहर का शरीर मात्र एक काल्पनिक रूप है जो हमको इस दुनिया में एक ढांचा देता है.
25 – जो चीज हमारे हाथ में नहीं है, उसके विषय में चिन्ता करके कोई फायदा नहीं.
26 – सभी काम ध्यान से करो, करुणा द्वारा निर्देशित किये हुए.
27 – दिल में दया की भावना रखना चाहिए, इससे मनुष्य का दर्जा बढ़ता है.
28 – जीवन में स्वार्थ को भूल कर त्याग भावना को लाना चाइये.
29 – अपनी सही जिम्मेदारियों को करने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए.
30 – पृथ्वी में जिस प्रकार मौसम में परिवर्तन आता है, उसी प्रकार जीवन में भी सुख – दुःख आता जाता है.
31 – कृष्ण भगवानुवाच, वो सबके दिल में है, और मै हर समय सभी लोगो के साथ हु.
32 – कृष्ण भगवानुवाच, वे मनुष्य हो या देव गुण सभी जगह मौजूद है.
33 – हमे हमेशा सकारात्मक चीजों को देखना चाहिए और सकारात्मक सोच रखना चाहिए क्योकि यह हमारे अस्तित्व को लोगो के सामने व्यक्त करता है.
34 – सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में है ना ही कही और.
35 – क्रोध से भर्म पैदा होता है, भर्म से बुद्धि व्यग्र होती है. जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है. जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है.
36 – मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओ के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है, और लगातार तुम्हे बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के कार्य कर रही है.
37 – जो मन को नियंत्रण नहीं करते उनके लिए वो शत्रु की तरह कार्य करता है.
38 – ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और धर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है.
39 – मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है, जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है.
40 – अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है.
41 – आत्म – ज्ञान की तलवार से काटकर अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर दो, अनुशासित रहो.
42 – इस जीवन में ना कुछ खोता है और ना व्यर्थ होता है.
43 – नर्क के तीन द्वारा है – वासना, क्रोध, और लालच.
44 – निर्माण केवल पहले से मौजूद चीजों का प्रक्षेपण है.
45 – मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है.
46 – लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे, सम्मानित व्यक्ति के लिए अपमान मृत्यु से भी बढ़कर है.
47 – प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर, पत्थर, और सोना सभी समान है.
48 – व्यक्ति जो चाहे बन सकता है यदि वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे.
49 – उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है, ना कभी था ना कभी होगा, जो वास्तविक है, वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता.
50 – ज्ञानी व्यक्ति को कर्म के प्रतिफल की अपेक्षा कर रहे अज्ञानी व्यक्ति के दिमाग को अस्थिर नहीं करना चाहिए.
51 – हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है.
52 – अप्राकृतिक कर्म बहुत तनाव पैदा होता है.
53 – जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है, जितना की मृत होने के लिए जन्म लेना. इसलिए जो अपरिहार्य है उसके लिए शोक मत करो.
54 – सभी अच्छे काम छोड़ कर बस भगवान में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ. मै तुम्हे सभी पापो से मुक्त कर दूंगा. शोक मत करो.
55 – किसी और का काम पूर्णता से करने से कहि अच्छा है की अपना काम करे, भले ही उसे अपूर्णता से करना पढ़े.
56 – प्रबुद्ध व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं रहता.
57 – मै उन्हें ज्ञान देता हु, जो सदा मुझसे जुड़े रहते है, और जो मुझसे प्रेम करते है.
58 – मै सभी प्राणियों को समान रूप से देखता हु, ना कोई मुझे कम प्रिय है ना अधिक. लेकिन मेरी जो प्रेमपूर्वक आराधना करते है वो मेरे भीतर रहते है और मै उनके जीवन में आता हु.
59 – भगवान प्रत्येक वस्तु में है, और सबसे ऊपर है.
60 – बुद्धिमान व्यक्ति कामुख सुख में आनंद नहीं लेता.
61 – हे अर्जुन, केवल भाग्यशाली योद्धा ही ऐसा युद्ध लड़ने का अवसर पाते है, जो स्वर्ग के द्वार के समान है.
62 – मेरी कृपा से कोई सभी कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी बस मेरी शरण में आकर अनंत अविनाशी निवास को प्राप्त करता है.
63 – जो कार्य में निष्क्रियता और निष्क्रियता में कार्य देखता है, वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है.
64 – आपके सार्वलौकिक रूप का मुझे ना प्रारम्भ ना मध्य ना अंत दिखाई दे रहा है.
65 – तुम उसके लिए शोक करते हो जो करने के योग्य नहीं है, और फिर भी ज्ञान की बाते करते हो. बुद्धिमान व्यक्ति का जीवित और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते है.
66 – मै धरती की मधुर सुगंध हु, मै अग्नि की ऊष्मा हु, सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का आत्मसंयम हु.
67 – कभी ऐसा समय नहीं था जब मै, तुम, या ये राजा – महाराज अस्तित्व मै नहीं थे, ना ही भविष्य में कभी ऐसा होगा की हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाये.
68 – कर्म मुझे बांधता नहीं, क्योकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इक्छा नहीं.
69 – हे अर्जुन हम दोनों कई जन्म लिए है. मुझे याद है, लेकिन तुम्हे नहीं.
70 – वह जो वास्तविकता में मेरे उत्कृस्ट जन्म और गतिविधियों को समझता है, वह शरीर त्यागने के बाद पुनः जन्म नहीं लेता और मेरे धन को प्राप्त होता है.
71 – अपने परम भक्तो, जो हमेशा मेरा स्मरण या एक – चित्त मन से मेरा पूजन करते है, में व्यक्तिगत रूप से उनके कल्याण और उनके जन्म के उद्देध्यो को पूरा करने का दायित्व लेता हु.
72 – कर्म योग वास्तव में एक परम रहस्य है.
73 – कर्म उसे नहीं बांधता जिसने काम का त्याग कर दिया है.
74 – ऐसा कुछ भी नहीं, चेतन या अचेतन, जो मेरे बिना अस्तित्व में रह सकता है.
75 – वह जो मृत्यु के समय मुझे स्मरण करते हुए अपना शरीर त्यागता है, वह मेरे धाम को प्राप्त होता है. इसमें कोई संशय नहीं है.
76 – भगवान कहते है में ही सब के कर्म करावन हार हु, सब मुझ से ही है.
77 – हम कभी वास्तव में दुनिया की मुठभेड़ में घुसते, हम बस अनुभव करते है अपने तंत्रिका तंत्र को.
78 – हमारी गलती अंतिम वास्तविकता के लिए यह ले जा रहा है, जैसे सपने देखने वाला यह सोचता है की उसके सपने के आलावा और कुछ भी सत्य नहीं है.
79 – जीवन में कभी भी ग़ुस्सा/क्रोध ना करे यह आपके जीवन को ध्वंस कर देगा.
80 – परमात्मा को जो अपने मन में हमेशा रखते है, संकट उनसे कोसो दूर रहता है, और प्रभु उनके हर कार्य में मदद करते है.
तो दोस्तों देखा आपने किस प्रकार भगवान कृष्ण ने श्रीमद भगवत गीता में अपने अनमोल कथन कहे दोस्तों आपतो जानते ही हो जब अर्जुन ने युद्ध के मैदान में हथियार डाल दिए थे. की में किस्से युद्ध करू यह तो सब मेरे ही लोग है, कोई मेरे गुरु है तो कोई मेरे परिवार वाले है तो कोई मेरे भाई है तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सच्चा गीता का ज्ञान सुनाया की है अर्जुन इस दुनिया में ना कोई अपना है
और नहीं कोई पराया यहा सब अपने – अपने कर्मो के बंधनो में बंधे हुए है सब को अपना कर्म निभाना है तुम्हारा कर्म है की तुम्हे युध्द लड़ना है अब तुम्हे यह नहीं देखना है की तुम्हारे सामने कोन है बस तुम्हे अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते जाना है लोगो के जीवन में उनके अच्छ और बुरे कर्म ही आड़े आता है जो उन्हें भोगना पड़ता है.
दोस्तों जब भगवान ने अर्जुन को इतनी बाते बताई तब जाकर अर्जुन ने पुनः अपने शस्त्र उठाये और युद्ध लड़ा और अंततः अर्जुन की उस महाभारत युद्ध में विजय हुई उसे धर्म युद्ध भी कहा गया है. और जो भगवान ने रण भूमि में अर्जुन को जो ज्ञान बताया था उसका कुछ अंश मैने आपके लिए इस पोस्ट में लिखा है में समझता हु,
आप भी इसे पढ़कर इस ज्ञान को अपने जीवन में उतारेंगे आप भी गीता ज्ञान के द्वारा अपना जीवन निर्वाह करेंगे और सदैव अच्छे कर्म और अच्छा व्यवहार करते चलेंगे आपने यदि गीता को अपने जीवन में धारण कर लिया तो आपको अन्य किसी भी ज्ञान की कोई जरूरत नहीं आपके पास सम्पूर्ण ज्ञान आ जायेगा आप भी श्रीमद भगवत गीता को अपने जीवन में धारण करे और अपने कर्मो को प्रभु के ज्ञान के अनुसार श्रेष्ठ बनाये.
तो दोस्तों आपको यह पोस्ट ” श्रीमद भगवत गीता के अनमोल कथन जो श्री कृष्ण ने कहे ” कैसी लगी प्लीज़ मुझे बताये और इस पोस्ट को लिखने में यदि मुझसे कोई गलती हुई है तो आप अवश्य मुझे बताये आप आपने विचार हमे Comments के माध्यम से भेज सकते है.